रुद्राभिषेक



रुद्राभिषेक से लाभ

  • रुद्राभिषेक सद्बुद्धि सद्विचार और सत्कर्म की ओर पृवृत्ति होती है |
  • रुद्राभिषेक से मानव की आत्मशक्ति, ज्ञानशक्ति और मंत्रशक्ति जागृत होती है |
  • रुद्राभिषेक से मानव जीवन सात्त्विक और मंगलमय बनता है |
  • रुद्राभिषेक से अंतःकरण की अपवित्रता एवं कुसंस्कारो के निवारण के उपरांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थचतुस्त्य की प्राप्ति होती है |
  • रुद्राभिषेक से असाध्य कार्य भी साध्य हो जाते हैं, सर्वदा सर्वत्र विजय प्राप्त होती है, अमंगलों का नाश होता है, सत्रु मित्रवत हो जाता है |
  • रुद्राभिषेक से मानव आरोग्य, विद्या , कीर्ति, पराक्रम, धन-धन्य, पुत्र-पौत्रादि अनेकविध ऐश्वर्यों को सहज ही प्राप्त कर लेता है |

 

अभीष्टसिद्धि के लिए अभिषेक के श्रेष्ठ पदार्थ

  • सात्त्विक समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु – दुग्ध एवं तीर्थजल से
  • बच्चों के जन्मोत्सव एवं उनके यसस्वी भविष्य के लिए -दुग्ध एवं तीर्थजल से
  • अपने दांपत्य जीवन में प्रीति वर्धन हेतु तथा गृह कार्य क्लेश निवारणार्थ – दुग्ध एवं सहाद से
  • व्यापार में उतरोत्तर वृद्धि तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए – गन्ने का रस
  • प्रियजनों की रोग शांति के लिए – कुशोदक से
  • पुत्र प्राप्ति तथा सुगर रोग शमनार्थ – गोदुग्ध एवं शक्कर मिश्रित जल से
  • वंश वृद्धि के निमित्त – घृत से
  • बुद्धि की जड़ता तथा कमजोरी दूर करने के लिए – शर्करा मिश्रित जल से
  • शत्रु विनाश के लिए – सरसों के तेल से
  • धन की वृद्धि एवं ऋण मुक्ति तथा जन्मपत्रिका में मंगल दोष सम्बन्धी निवारणार्थ – शहद से

 

प्रतिदिन पूजन का क्रम

  • सर्व प्रथम – आचमन करें (तीन बार जल पियें) उल्टे
  • हाथ से सीधे हाथ में जल लें और पियें। चौथी
  • बार में हाथ धोलें लें।
  • पवित्रता के लिये अपने ऊपर जल छिडके।
  • अपनी आसन की पुष्प, अक्षत से पूजन करें।
  • मूर्ति स्नान
  • चन्दन
  • चावल
  • पुष्प
  • विल्वपत्र यदि उपलब्ध है तो
  • अगरबत्ती
  • नैवेध (प्रसाद)
  • प्रार्थना के साथ प्रणाम
  • पूजन के अंत में अपनी आसन के पास जल छोडकर
  • तीन बार इन्द्र का नाम लें। ”ऊॅं इन्द्राय नमः”

 

विशेष पूजन का क्रम

    • सर्व प्रथम – आचमन करें (तीन बार जल पियें) उल्टे हाथ से सीधे हाथ में जल लें और पियें। चौथी बार में हाथ धोलें लें।
    • पवित्रता के लिये अपने ऊपर जल छिडकें।
    • अपनी आसन की जल, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।
    • घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर पुष्प अक्षत लेकर दीपक की पूजन करें।
    • हाथ में जल चावल लेकर मानसिक संकल्प करें कि -(मैं आपके चरणों में अखंड भक्ति हेतु एवं अपने और अपने परिवार के कल्याण के लिए यथा ज्ञान आपकी पूजन कर रहा हूँ।)

 

गणेश पूजन

    • पुष्प अक्षत लेकर गणेश जी का ध्यान करें एवं संक्षिप्त पूजन करें। (स्नान, चन्दन, चावल, पुष्प, दूर्वा,अगरबत्ती, नैवेध, फल, दक्षिणा, प्रणाम)

 

कुमार पूजन (कार्तिक पूजन)

    • एक पुष्प में चन्दन, चावल लगाकर शिव जी के पास छोड दें। एक आचमनी जल छोड दें।

 

नन्दीश्वर पूजन

    • एक पुष्प में चन्दन, चावल लगाकर शिव जी के सामने छोड दें। एक आचमनी जल छोड दें।

 

सर्प (नागराज) पूजन

    • एक पुष्प में चन्दन लगाकर शिव जी के पीछे छोड दें। एक आचमनी जल छोड दें।

 

गौरी (पार्वती) पूजन

    • एक रक्त पुष्प में चन्दन, चावल लगाकर शिव जी के बायीं ओर जलहरि पर छोड दें। एक आचमनी जल छोड दें।

 

प्रार्थना –

    • महिला वर्ग गौरी से प्रार्थना करें कि हे मॉं ! मैं जिस उद्देश्य से आपकी पूजन कर रहीं हूँ। उसकी पूर्ति करते हुए मेरे सौभाग्य की रक्षा करें।

 

शिव पूजन

    • अपने दोनों हाथों के बीच में विल्वपत्र रखकर नेत्र बंद कर भोलेनाथ का आवाहन करें। उस समय मन में भाव यह हो कि आप इस जगत के स्वामी हैं। किन्तु मैं जब तक आपकी पूजन कर रहा हूँ। तब तक आप मेरे प्रेम भाव के कारण इस शिवलिंग में आकर स्थिर हो जावें।
    • इस भाव के द्वारा शिवलिंग पर विल्वपत्र चढ़ावे।
    • तत्पश्चात तीन बार आचमनी से शिव जी के सामने जल उतारकर छोड दें। चौथी बार में शिव जी को स्नान करावें।

 

इसके बाद क्रमशः इस प्रकार विभिन्न वस्तुओं से स्नान करावें।

    • दूध से – पुनः शुद्ध स्नान
    • दही से – पुनः शुद्ध स्नान
    • घी से – पुनः शुद्ध स्नान
    • शकर से – पुनः शुद्ध स्नान
    • पंचामृत से – (दूध, दही, घी, शहद (नाममात्र के लिऐ) शकर – पुनः शुद्ध स्नान
    • गंध चन्दन से – पुनः शुद्ध स्नान
    • भस्म से – पुनः शुद्ध स्नान
    • इत्र से – पुनः शुद्ध स्नान
    • फल के रस से – पुनः शुद्ध स्नान
    • पुष्पोदक (पुष्प के जल से) – पुनः शुद्ध स्नान
    • स्वर्णोंदक (स्वर्ण के जल से) – पुनः शुद्ध स्नान
    • गर्भोदक से (नारियल के जल से) – पुनः शुद्ध स्नान
    • विजया से (भॉंग) – पुनः शुद्ध स्नान
    • तीर्थ जल से(नर्मदा, गंगा आदि का जल) – तीर्थ जल से स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान नहीं।
    • १६ बार ऊॅं नमः शिवाय बोलते हुए शिव जी के ऊपर लगातार जल धरा छोड़े ।
    • पुनः शुद्ध स्नान
    • मौली
    • जनेऊ में थोडा सा चन्दन लगाकर चढ़ावे – एक आचमनी जल छोड दें।
    • चन्दन
    • चावल
    • रोली (शिव जी के नीचे जलहरी पर)
    • पुष्प
    • विल्वपत्र
    • धूप (अगरबत्ती)
    • दीपक के पास थोड़े से चावल छोड़े
    • हाथ धोवें।
    • नैवेध (प्रसाद) में विल्वपत्र अथवा पुष्प छोड दें।
    • जल घुमावे, नेत्र बंद करें, घंटी बजावें।
    • दोनों हाथों से ऋतुफल चढ़ावे, एक आचमनी जल छोड दें।
    • पान अथवा लोंग इलायची
    • दक्षिणा चढ़ावे
    • हाथ जोडकर नेत्र बंद करते हुए प्रार्थना करें।

 

प्रार्थना करते समय मन में भाव यह हों कि –

  • मेरी आत्मा आप हैं मेरी बुद्धि में गिरजा अर्थात पार्वती जी का निवास है।
  • आपके सहचर ही हमारे प्राण हैं और मेरा शरीर ही आपका घर है।
  • इस सांसारिक विषय भोग के द्वारा ही मैं आपकी पूजन कर रहा हूँ।
  • मेरी निद्रा ही आपकी समाधी की स्थिति है।
  • इस संसार में जो मैं यहॉं से वहॉं दौड भाग कर रहा हूँ मानो वही मैं आपकी परिक्रमा लगा रहा हूँ। साथ ही मेरी वाणी ही आपके स्त्रोत हैं। इस प्रकार मेरे द्वारा जो कुछ भी कर्म किया जा रहा है। हे शम्भो! वह सब आपकी आराधना ही तो है।
  • कर्पूर अथवा पु”प से आरती करें। आरती लें पुष्पांजलि छोड़े।
  • चंडीश्वर पूजन – शिवजी की पूजन का जल आचमनी से लेकर शिवजी के सामने तीन बार छोड़े उसी स्थान पर शिव जी पर चढ़े हुए पुष्प एवं प्रसाद छोड़े।
  • अभिषेक का जल अपने ऊपर छिडकें व अपने बच्चों के ऊपर छिडकें। इस समय अपनी पत्नि को अपने बाएंतरफ बिठा दें। जबकि पूजन करते समय दायें हाथ तरफ बिठावें।
  • अपनी आसन के नीचे जल छोडकर नेत्रों से लगावें और ऊॅं इन्द्राय नमः तीन बार बोलें।
  • अपने द्वारा किया हुआ संपूर्ण कर्म भगवान को समर्पित करें।
  • इस संपूर्ण पूजन में ऊॅं नमः शिवाय का मानसिकजाप करते रहना है।

 

पं. डॉ. श्रीकान्त मिश्र